27 सितंबर 2010

छात्रों को उठाना चाहिए सुविधा का लाभ : कुलपति

भारती शिक्षा समिति भागलपुर के तत्वावधान में रविवार को तीन दिवसीय प्रांतीय विज्ञान मेला आंनदराम ढांढनियॉँ सरस्वती विद्या मंदिर में शुरू हो गया। मेला का का उद्घाटन तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. कृष्णानंद दुबे ने किया। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि वेद और विज्ञान को एक साथ जोड़ कर शिक्षा देने का काम भारती शिक्षा समिति कर रही है। यह समिति धन्यवाद का पात्र है। उन्होंने कहा कि आज बच्चे जिस सुविधा के साथ शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं ये बच्चों की खुशनसीबी है। क्योंकि पहले शिक्षा ग्रहण करने के लिए इतने साधन नहीं हुआ करते थे। इसका लाभ बच्चों को जरूर उठाना चाहिए।

इस मौके पर संभाग निरीक्षक दिलीप झा ने कहा कि भारती शिक्षा समिति संपूर्ण विश्व का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन है। किसी भी दूसरे संगठन के इतने विद्यालय पूरे देश में नहीं चल रहे हैं। अब तो मारीशस एवं नेपाल में भी यह संगठन शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा संगठन का उद्देश्य सिर्फ शिक्षा का मॉडल खड़ा करना नहीं है। बल्कि संस्कार के साथ समाजिक चेतना को जगाने का कार्य भी संगठन द्वारा शिक्षा के जरिये किया जाता है। संभाग निरीक्षक श्री झा ने कहा कि संगठन का उद्देश्य ऐसी शिक्षा का दीप जलाना है, जिसमें बच्चों का सर्वागीण विकास हो। बच्चों को राष्ट्रीय चेतना, देशभक्ति एवं नैतिकता की भी शिक्षा दी जाती है। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता छेदी लाल चौबे ने एवं आभार व्यक्त लीलाधर झा ने किया। इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विभाग प्रचारक राणा प्रताप, कुलपति के सचिव डॉ. मथुरा दुबे सहित विद्या भारती के विभिन्न स्कूलों के शिक्षक-शिक्षिकाएं व छात्र-छात्राएं उपस्थित थीं। प्रांतीय विज्ञान मेला में 17 जिले के 106 विद्यालयों के 500 बच्चों ने भाग लिया है। कुलपति डॉ. दुबे ने मेले में लगाई गई प्रदर्शनी को भी देखा एवं बच्चों से पर्यावरण संरक्षण आदि मुद्दो पर बातचीत की।

25 सितंबर 2010

बीएड की पढ़ाई नहीं हो सकी शुरू

भागलपुर में घंटाघर चौक के पास स्थित शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में 18 साल बाद भी बीएड की पढ़ाई पुन: शुरू नहीं की जा सकी। 1992 में बीएड घोटाले का जिन्न बाहर आने के बाद सरकार ने इस महाविद्यालय में बीएड व एमएड की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया था। आलम यह है कि महाविद्यालय पोस्ट ऑफिस बन कर गया है। विभागीय पत्रों के निबटारे के अलावा यहां और कोई भी कार्य नहीं होता है। वर्ष 1954 में भागलपुर में बीएड व एमएड की पढ़ाई के लिए इस कॉलेज की स्थापना की गई थी। कॉलेज परिसर में ही अभ्यर्थियों के लिए बीस कमरे का छात्रावास था। चार साल से जिला प्रशासन के आदेश से इस छात्रावास में उच्च विद्यालय कंपनीबाग का आवासीय विद्यालय चल रहा है। इस कॉलेज में कुल सात प्राध्यापक हुआ करते थे। फिलहाल यहां दो लिपिक श्याम सुंदर चक्रवर्ती व सहायक लिपिक संतोष कुमार सुमन पदस्थापित हैं। 5.6 हेक्टेयर में अवस्थित यह कॉलेज परिसर फिलहाल असमाजिक तत्वों का अड्डा बना हुआ है। खगडि़या की जिला शिक्षा पदाधिकारी रीना कुमारी वर्तमान में कॉलेज की प्राचार्य की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। बीएड घोटाला होने के बाद सरकार ने ऐसे कॉलेजों को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद भुवनेश्र्वर से मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया। प्राचार्या रीना कुमारी के प्रयास से पिछले साल राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की एक टीम ने कॉलेज की मान्यता पर मुहर लगाने के लिए यहां का जायजा लिया था। टीम ने कॉलेज को बीएड व एमएड की पढ़ाई के लिए उपयुक्त मानते हुए शिक्षकों की कमी को दूर करने का निर्देश दिया था। टीम के निर्देशानुसार यहां कुछ प्राध्यापकों को पदस्थापित भी किया गया। लेकिन साल भर से अधिक समय बीत जाने के बाद भी जब मान्यता संबंधी कोई जवाब भुवनेश्र्वर से नहीं आया तो पदस्थापित प्राध्यापकों को मुजफ्फरपुर स्थित शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में पदस्थापित कर दिया गया। क्या कहती हैं प्राचार्या भागलपुर : शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की प्राचार्या रीना कुमारी का कहना है कि बीएड की पढ़ाई के लिए यह कॉलेज पूरी तरह उपयुक्त है। इसके उन्होंने प्रयास भी किया। लेकिन एनसीईटी नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन बोर्ड भुवनेश्र्वर द्वारा अब तक इसे मान्यता नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि एनसीईटी की जांच रिपोर्ट मानव संसाधन विकास विभाग को भेजी गई है। उन्होंने बताया कि महाविद्यालय को असमाजिक तत्वों का चारागाह बनने से रोकने व यहां गलत तत्वों के घुसने पर पाबंदी को लेकर उन्होंने अपने स्तर से डीएम को पत्र लिख कर इससे अवगत करा दिया है।

24 सितंबर 2010

..और महंगी हो जाएगी शिक्षा

रुप कुमार
केन्द्र सरकार द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सार्वजनिक भागीदारी यानी प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत शिक्षा को निजी क्षेत्र के हवाले करने का प्रयास किया जा रहा है। इससे शिक्षा के क्षेत्र में कितना सुधार हो पाएगा, स्कूलों की व्यवस्था कितनी बेहतर हो पाएगी जैसे अनेक प्रश्न मुंह बाये खड़े हैं। इन्हीं मुद्दों पर हमने कुछ शिक्षाविदें की राय ली। इनमें अधिकतर शिक्षकों का कहना था कि इस व्यवस्था से गरीब के बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। हां, अगर इस व्यवस्था पर पूरी तरह सरकारी नियंत्रण हो तो बात कुछ बन सकती है। ज्यादातर शिक्षक इस व्यवस्था के बदले स्कूलों को संसाधनों से लैस कर वहां की शैक्षणिक व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने की वकालत की है। मारवाड़ी पाठशाला के गणित विषय के शिक्षक डॉ. महेश्र्वर प्रसाद यादव का कहना है कि शिक्षा का निजीकरण नहीं होना चाहिए। वे कहते हैं निजीकरण से शिक्षा का व्यवसायीकरण हो जाएगा। गरीब के बच्चों में अशिक्षा बढ़ जाएगी। पूंजीपतियों का बोलबाला हो जाएगा। फिलहाल शिक्षा की जो स्थिति है उसमें सुधार की जरूरत है। इसी विद्यालय के अंग्रेजी के शिक्षक लक्ष्मण प्रसाद सिंह का कहना है कि निजीकरण से शिक्षा व्यवस्था में मैनेजमेंट की पूर्ण भागीदारी हो जाएगी। इससे प्रबंधन की मनमानी बढ़ेगी। पैसे वालों की तूती बोलेगी। शिक्षक हरेराम गुप्ता का कहना है कि सरकारीकरण के कारण शिक्षा की हालत दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। मनमाने तरीके से शिक्षकों के तबादले से शिक्षण- व्यवस्था पूरी तरह प्रभावित हुई है। केन्द्र का यह प्रस्ताव स्वागत योग्य है। इससे प्रतियोगिता बढ़ेगी और मेधावी छात्रों को आगे आने का मौका मिलेगा। शिक्षक रंजन प्रसाद सिंह इसे शिक्षा हित में बेहतर मानते हैं। उनका विचार है कि सार्वजनिक भागीदारी होने से पब्लिक व प्राइवेट दोनों सेक्टर मजबूत होंगे। नवयुग विद्यालय के प्राचार्य चंद्रचूड़ झा का कहना है कि निजी संस्थानों की दखल बढ़ जाएगी। गरीब के बच्चों को शिक्षा हासिल करने में परेशानी होगी। इस व्यवस्था को लागू करने से बेहतर होगा सरकार सरकारी विद्यालयों की हालत में सुधार लाए। इसी विद्यालय के अर्थशास्त्र के शिक्षक प्रकाश चंद्र गुप्ता का कहना है कि इस व्यवस्था से पढ़ाई का स्तर ऊंचा होगा। लेकिन इसके लिए निर्धारित फीस के अलावा सिलेबस में एकरूपता होनी चाहिए। साथ ही सरकारी नियंत्रण में नियम-कानून के साथ व्यवस्था को लागू किया जाना चाहिए। राजकीय बालिका इंटर विद्यालय के समाज शास्त्र के शिक्षक संजय कुमार जायसवाल का कहना है कि निजीकरण शिक्षा में सुधार का बेहतर विकल्प नहीं है।